भारत में एक मशहूर कहावत है- नौ दिन चले अढ़ाई कोस। एक समय था जब यह कहावत बहुत धीमी रफ्तार के साथ सुस्त सरकारी कार्यशैली का पर्याय बन चुकी थी। लेकिन कोविड जैसी वैश्विक आपदा के बीच भारत की टीकाकरण रफ्तार ने इस कहावत के मायने बदल दिए हैं। जहां एक टीका बनाने में 9-10 साल लगते थे, भारत ने महज नौ महीने में ही दो-दो स्वदेशी वैक्सीन का ईजाद कर दिया और अब 100 करोड़ टीके लगाने का कीर्तिमान स्थापित कर लिया है तो इसकी सबसे बड़ी वजह है- आत्मविश्वास जो किसी भी अभियान का मूल आधार होता है और इस आत्मविश्वास का आधार बना है भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में उसका मौजूदा नेतृत्व जो चुनौतियों और समस्याओं से टकराने में विश्वास रखता है…

कृतम् मे दक्षिणे हस्ते, जयो मे सव्य आहितः। अथर्ववेद के इस सूत्र का अर्थ है- मेरे दाएं हाथ में कर्म है और बाएं हाथ में विजय। 22 अक्टूबर को राष्ट्र को संबोधित करते हुए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन शब्दों के साथ अपने संबोधन की शुरुआत की तो कोविड काल की शुरुआत से लेकर 100 करोड़ वैक्सीन डोज के विश्व इतिहास तक पहुंचने की भारत की पूरी यात्रा भी उन्होंने सबके सामने रखी। उन्होंने कहा, “आज कई लोग भारत के वैक्सीनेशन प्रोग्राम की तुलना दुनिया के दूसरे देशों से कर रहे हैं। भारत ने जिस तेजी से 100 करोड़ का, वन बिलियन का

आंकड़ा पार किया है , उसकी सराहना भी हो रही है। लेकिन, इस विश्लेषण में एक बात अक्सर छूट जाती है कि हमने ये शुरुआत कहां से की है?”

दरअसल, दुनिया के दूसरे बड़े देशों को वैक्सीन पर रिसर्च करने में महारथ हासिल थी और भारत अधिकतर इन देशों की बनाई वैक्सीन पर ही निर्भर रहता था। इसी वजह से जब 100 साल की सबसे बड़ी महामारी आई तो भारत पर सवाल उठने लगे। क्या भारत इस वैश्विक महामारी से लड़ पाएगा? भारत दूसरे देशों से इतनी वैक्सीन खरीदने का पैसा कहां से लाएगा? भारत को वैक्सीन कब मिलेगी? भारत के लोगों को वैक्सीन मिलेगी भी या नहीं? क्या भारत इतने लोगों को टीका लगा पाएगा कि महामारी को फैलने से रोक सके? कई सवाल थे लेकिन 21 अक्टूबर को भारत ने सबसे कम समय में 100 करोड़ वैक्सीन डोज के साथ हर सवाल का जवाब दे दिया। 100 करोड़ वैक्सीन डोज और वो भी मुफ्त। ये केवल एक आंकड़ा नहीं है। ये देश के सामर्थ्य का प्रतिबिंब है, इतिहास के नए अध्याय की रचना है। ये उस नए भारत की तस्वीर है जो कठिन लक्ष्य निर्धारित कर, उन्हें हासिल करना जानता है। ये उस नए भारत की तस्वीर है जो अपने संकल्पों की सिद्धि के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा करता है। 100 करोड़ वैक्सीन डोज का एक प्रभाव ये भी होगा कि दुनिया अब भारत को कोरोना से ज्यादा सुरक्षित मानेगी। एक फार्मा हब के रूप में भारत को दुनिया में जो स्वीकृति मिली हुई है, उसे और मजबूती मिलेगी। पूरा विश्व आज भारत की इस ताकत को देख रहा है, महसूस कर रहा है।

टीका लगाने के मामले में भारत की रफ्तार का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि यूरोपियन यूनियन, अरब लीग, नाटो, जी-7, आसियान जैसे देशों के रोजान औसत से भारत कहीं आगे है। आज भारत जहां एक दिन में 1 करोड़ से अधिक टीके लगाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर रहा है जबकि जापान को इतने ही डोज लगाने में 8 दिन, अमेरिका को 11 दिन, जर्मनी को 45 दिन, इजरायल को 104 दिन और न्यूजीलैंड को 124 दिन लगते हैं। उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों ने भी दुनिया के कई देशों से अधिक औसतन टीके लगाए। यही वजह है कि टीका लगाने के मामले में भी आज भारत दुनिया का नेतृत्व कर रहा है।

हेल्थ वर्कर्स से लेकर वैज्ञानिकों की मेहनत का नतीजा

देश-दुनिया ने वह तस्वीर देख दांतों तले उंगली दबा ली, जब बाढ़ की भयावहता के बीच बिहार जैसे राज्य ने टीके वाली नाव चलाकर टीकाकरण की राह दिखाई तो दुर्गम पहाड़ियां, सुदूर जनजातीय क्षेत्र, भाषाई-धार्मिक विविधताएं और चुनिंदा अफवाहों के बीच टीकाकरण में भारत ने अभूतपूर्व गति का कीर्तिमान स्थापित कर दिया। विविधता से भरे देश की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में जनसंवाद और जनभागीदारी विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान का आधार बन गया है, जो इस कोविड जैसी वैश्विक महामारी के खिलाफ जीवन रक्षा और मानव सभ्यता को बचाने का प्रतीक बनकर उभरा है। 100 करोड़ टीके के ऐतिहासिक पल की नींव में भारत के वैज्ञानिक, फ्रंटलाइन वर्कर, हेल्थ वर्कर से लेकर उन सभी लोगों का प्रयास शामिल है, जिनकी वजह से यह मुमकिन हो पाया है। तभी तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में 100 करोड़ डोज के ऐतिहासिक पल के समय हेल्थ लाइन वर्कर्स को धन्यवाद दिया तो अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी ऐसे कई हेल्थ वर्कर के साथ संवाद करते हुए उनकी कहानियां साझा कीं। उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के चानी कोराली सेंटर पर तैनात एएनएम पूनम नौटियाल ने प्रधानमंत्री के साथ संवाद में टीकाकरण के बीच उन चुनौतियों का जिक्र किया जिन पर विजय हासिल कर उत्तराखंड 100 फीसदी पहली कोविड वैक्सीन की डोज लेने वाला राज्य बना है। पूनम ने कहा- “बारिश से कभी-कभी सड़क बंद हो जाती थी। वैक्सीनेशन के लिए कई बार नदी पार करनी पड़ी। तराई वाले इलाकों में 8 से 10 किमी रोज चलना पड़ा। बावजूद इन कठिनाइयों के हमने संकल्प लिया था कि एक भी आदमी बचना नहीं चाहिए। घर-घर जाकर लोगों को वैक्सीन दी है। कई लोगों को इसके लिए समझाना तक पड़ा, लेकिन हमने अपना लक्ष्य पूरा कर ही दम लिया।”

अपने एक विशेष लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी टीकाकरण कार्यक्रम की चुनौतियों का जिक्र करते हुए लिखा- “आज तक केवल कुछ चुनिंदा देशों ने ही अपने स्वयं के टीके विकसित किए हैं। 180 से भी अधिक देश टीकों के लिए जिन उत्पादकों पर निर्भर हैं, वे बेहद सीमित संख्या में हैं। यही नहीं, जहां एक ओर भारत ने 100 करोड़ खुराक का अविश्वसनीय या जादुई आंकड़ा सफलतापूर्वक पार कर लिया है, वहीं दूसरी ओर दर्जनों देश अब भी अपने यहां टीकों की आपूर्ति की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं! इसका श्रेय भारतीय वैज्ञानिकों और उद्यमियों को दिया जाना चाहिए, जिन्होंने इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी उत्कृष्ट प्रतिभा और कड़ी मेहनत की बदौलत ही भारत टीकों के मामले में ‘आत्मनिर्भर’ बन गया है। भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में सिर्फ उत्पादन करना ही काफी नहीं है। इसके लिए अंतिम व्यक्ति तक को टीका लगाने और निर्बाध लॉजिस्टिक्स पर भी फोकस होना चाहिए। इसमें निहित चुनौतियों को समझने के लिए जरा इसकी कल्पना करें कि टीके की एक शीशी को आखिरकार कैसे मंजिल तक पहुंचाया जाता है। पुणे या हैदराबाद स्थित किसी दवा संयंत्र से निकली शीशी को किसी भी राज्य के हब में भेजा जाता है, जहां से इसे जिला हब तक पहुंचाया जाता है।

फिर वहां से इसे टीकाकरण केंद्र तक पहुंचाया जाता है। इसमें विमानों की उड़ानों और ट्रेनों के जरिये हजारों यात्राएं सुनिश्चित करनी पड़ती हैं। टीकों को सुरक्षित रखने के लिए इस पूरी यात्रा के दौरान तापमान को एक खास रेंज में बनाए रखना होता है, जिसकी निगरानी केंद्रीय रूप से की जाती है। इसके लिए एक लाख से भी अधिक शीत-शृंखला (कोल्ड-चेन) उपकरणों का उपयोग किया गया। राज्यों को टीकों के वितरण कार्यक्रम की अग्रिम सूचना दी गई थी, ताकि वे अपने अभियान की बेहतर योजना बना सकें और टीके पूर्व-निर्धारित तिथि को ही उन तक सफलतापूर्वक पहुंच सकें। अत: स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह निश्चित रूप से एक अभूतपूर्व प्रयास रहा है।

इन सभी प्रयासों को कोविन के एक मजबूत तकनीकी मंच से जबर्दस्त मदद मिली। इसने यह सुनिश्चित किया कि टीकाकरण अभियान न्यायसंगत, मापनीय, ट्रैक करने योग्य और पारदर्शी बना रहे। इसने यह भी सुनिश्चित किया कि एक गरीब मजदूर अपने गांव में पहली खुराक ले सकता है और उसी टीके की दूसरी खुराक तय समय अंतराल पर उस शहर में ले सकता है, जहां वह काम करता है।” आज अगर टीकाकरण की रफ्तार में भारत के नए-नए रिकॉर्ड स्थापित हो रहे हैं, तो इसकी वजह है स्वास्थ्य ढांचे की मजबूती के लिए निरंतर किए जा रहे प्रयास। अब भारत की तैयारी ऐसी किसी भी महामारी से जूझने के लिए स्वास्थ्य ढांचे का नया तंत्र विकसित करने में जुट चुका है।

वैक्सीन निर्माताओं की अहम भूमिका

भारत की इस उपलब्धि में अहम साझेदार के रूप में वो टीका निर्माता भी हैं, जिनकी वजह से यह लक्ष्य पूरा हो पाया है तो साथ ही अब इसके बाद भारत वैक्सीन निर्माण का वैश्विक हब बनने की ओर अग्रसर है। 23 अक्टूबर को प्रधानमंत्री आवास पर देश में कोविड वैक्सीन बनाने वाले इन 7 निर्माताओं से बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी ने इसका जिक्र करते हए कहा, “टीकाकरण अभियान की सफलता को देखते हुए पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने हेतु तैयार रहने के लिए टीका निर्माताओं को लगातार मिलकर काम करना चाहिए।” सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा, “भारत की 100 करोड़ वैक्सीनेशन की उपलब्धि एक मील का पत्थर है। हमारे प्रधानमंत्री के नजरिए और दिशा निर्देश में हमने इसे हासिल किया है। प्रधानमंत्री अपने रास्ते पर डटे रहे, सभी को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया। सरकार के साथ इंडस्ट्री ने मिल कर काम किया, इसलिए 100 करोड़ टीकाकरण का आंकड़ा हम प्राप्त कर सके।”

100 करोड़ वैक्सीन डोज का आंकड़ा बहुत बड़ा जरुर है, लेकिन इससे लाखों छोटे-छोटे प्रेरक और गर्व से भर देने वाले अनेक अनुभव, अनेक उदाहरण जुड़े हुए हैं। बहुत सारे लोग पत्र लिखकर मुझसे पूछ रहे हैं कि वैक्सीन की शुरुआत के साथ ही कैसे मुझे यह विश्वास हो गया था कि इस अभियान को इतनी बड़ी सफलता मिलेगी? मुझे ये दृढ़ विश्वास इसलिए था, क्योंकि मैं अपने देश, अपने देश के लोगों की क्षमताओं से भली-भांति परिचित हूं।– नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

दुनिया ने की तारीफ

भारत की इस उपलब्धि पर मालदीव से लेकर श्रीलंका और अमेरिका से इजरायल तक तमाम देशों ने बधाई दी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस ए ग्रीबीसीस ने कहा, “भारत ने कोरोना महामारी के दौर में बिना किसी पक्षपात के इतना बड़ा टीकाकरण लक्ष्य हासिल किया।  इजराल के पीएम नफ्ताली बेनेट ने बधाई देते हुए कहा, “कोविड-19 के खिलाफ भारत के सफल टीकाकरण अभियान का नेतृत्व करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को बधाई। उन्होंने कहा कि ये जीवन रक्षक टीके हमें कोविड महामारी के खिलाफ जारी जंग जीतने में मदद करेंगे।” अमेरिका ने कहा, “भारत के सामूहिक प्रयास की यह ऐतिहासिक जीत है। इसने कोरोना की जंग जीतने में एक बड़ी भूमिका निभाई है।”

248 दिन बाद सबसे कम केस, वैक्सीनेशन 106 करोड़ के पार

1 नवंबर को कोविड के 12,514 नए केस दर्ज किए गए हैं। ठीक होने वालों मरीजों का प्रतिशत बढ़कर 98.20% पहुंच चुका है। वहीं वैक्सीनेशन का आंकड़ा 1 नवंबर तक 106 करोड़ के पार पहुंच चुका है। भारत में सक्रिय मामलों की कुल संख्या 1,58,817 है, जो पिछले 248 दिनों में सबसे कम है। वहीं अब तक 60.92 करोड़ से अधिक (60,92,01,294) नमूनों की कोविड जांच की गई है।