संत मत
वाणी की शक्ति से ही हम सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते है। लोगो को अपना बना सकते है। वाणी भी दो प्रकार की होती है। एक वह जिसमे अमृत घुला होता है। अर्थात जो वाणी सत्य मधुरता उत्साह और उल्लाहस से ओत प्रोत वह वाणी अमृत तुल्य कहलाएगी। इसके विपरीत जिस वाणी में कठोरता, कटुता, भेदभाव, द्वेषभाव और उपहास आदि का समावेश होगा तो वह कटुता की पर्याय बनेगी
शब्दो की इन क्षमताओं को देखते हुए हमारे मनीषियों और धर्म शास्त्रों ने हमे प्रत्येक शब्द के प्रति सावधान रहने का संकेत दिया है। साथ ही वाणी को सदेव मधुर,पवित्र एवं हितकारी बनाने का निर्देश दिया है। कबीर दास जी ने कहा है कि ‘कागा का को धन हरे,कोयल का को देय। इसका अर्थ यही है कि मीठे बोल बोलकर सारे जग को अपना किया जा सकता है।
लोक व्यवहार मर वाणी का अपना महत्व है जो सामाजिक जीवन मे सफलता से लेकर आंतरिक शांति एवं सन्तोष का आधार बनती है। इसलिए वाणी का कभी दुरपयोग नहीं करना चाहिए।इस दुरपयोग से हमारी शक्ति का बड़ा अंश नष्ट हो जाता है। वाणी को सशक्त बनाने के लिए मौन का अभ्यास किया जा सकता है।