पेशावर कांड की आज 92वीं बरसी है। पेशावर कांड आज ही के दिन 1930 में घटित हुआ था। यही वो दिन था जब दुनिया से एक वीर सैनिक का असली परिचय हुआ था जिसने पेशावर में देश की आजादी के लिये लड़ने वाले निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया था। ये वो दौर था जब देश में पूर्ण स्वराज को लेकर आंदोलन चल रहा था। गांधी जी ने 12 मार्च, 1930 को डांडी मार्च शुरू किया था। इस बीच भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी जाने की चर्चाएं भी तेज थीं, पूरे राष्ट्र में इससे उबाल था, चंद्र सिंह गढ़वाली भी इनमें शामिल थे।

1891 में गढ़वाल के एक किसान परिवार में जन्मे चंद्र सिंह को पिता पढ़ा नहीं सके तो उन्होंने अपनी मेहनत से खुद ही पढ़ना लिखना सीख लिया। चंद्र सिंह 1914 में लैंसडौन में अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गए। यही वह समय था जब प्रथम विश्वयुद्ध की शुरूआत हो चुकी थी। 1915 में ही चंद्र सिंह को अंग्रेजी सेना ने लड़ने के लिए फ्रांस भेज दिया। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल थे। पठानों पर हिंदू सैनिकों द्वारा फायर करवाकर अंग्रेज भारत में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच फूट डालकर आजादी के आंदोलन को भटकाना चाहते थे लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने अंग्रेजों की इस चाल को न सिर्फ भांप लिया, बल्कि उस रणनीति को विफल कर वह इतिहास के महान नायक बन गए।

जब 23 अप्रैल को पेशावर के किस्साखानी बाजार में कांग्रेस के जुलूस में हजारों पठान प्रदर्शन कर रहे थे, गढ़वाली सैनिकों ने अंग्रेजी अफसर के कहने पर जुलूस को घेर लिया था किंतु जब अफसर ने प्रदर्शन के सामने चिल्लाकर पठानों को कहा कि तुम लोग भाग जाओ वर्ना गोली से मारे जाओगे तो पठान जनता अपनी जगह से नहीं हिली। चंद मिनट बाद ही अंग्रेज कप्तान रिकेल ने आदेश दिया गढ़वाली तीन राउंड फायर, उसके तुरंत बाद ही वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने जोर से कहा, गढ़वाली सीज फायर! यह शब्द सुनते ही सभी गढ़वाली सैनिकों ने अपनी राइफलें जमीन पर रख दीं। अंग्रेज अफसर ने जब चंद्र सिंह से इस बारे में पूछा तो गढ़वाली ने उनसे कहा कि यह सारे लोग निहत्थे हैं, निहत्थों पर हम गोली कैसे चलाएं। इस घटना ने न सिर्फ देश में सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया था, बल्कि गढ़वाली सैनिकों का पूरे देश में एक अलग ही सम्मान बढ़ गया था।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने 23 अप्रैल 1930 को तो सैनिकों को पठानों पर गोली चलाने से रोक दिया था, अगले दिन करीब 800 गढ़वाली सैनिकों ने अंग्रेजों का हुक्म मानने से इनकार कर दिया। सैनिक अपनी राइफलों को अंग्रेज अफसरों की तरफ करके खड़े हो गए थे। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली और अन्य गढ़वाली हवलदारों ने बंदूकें जमा करने को सैनिकों को राजी करा दिया, उन्होंने अंग्रेजों का कोई भी आदेश मानने से इनकार कर दिया। इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों के विद्रोह करने से अंग्रेजों की चूलें हिल गई थीं। राइफल जमा करने के बाद सभी सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया था.