एक बच्चा मिट्टी का ढेर बना कर उस पर छोटे-छोटे तिनके लगा रहा था। उसे ऐसा करते देख उसके पिता ने उत्सुकतावश पूछा, “क्या कर रहे हो ?” उस बच्चे ने जवाब दिया, “बंदूक बो रहा हूँ। जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, पेड़ पर बंदूकें आ जाएंगी। तब मैं इन जालिम अंग्रेजों से लडूंगा।” लड़कपन में ही अपने पिता से ऐसी बात करने वाला यह बच्चा कोई और नहीं, बल्कि भारत का एक महान क्रांतिकारी था जिसे आज दुनिया भगत सिंह के नाम से जानती है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ऐसे क्रांतिकारियों के कारनामों से भरा है जिन्होंने अपनी चिंगारी से युगों को रौशन किया है। भगत सिंह ऐसे ही शहीद क्रांतिकारी थे, जिन्होंने क्रांति और जनचेतना को जगाकर देश को एक नई दिशा दी थी।

28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह का देश के प्रति प्रेम और आजादी के लिए जुनून अद्भुत था। उनका मानना था कि अंग्रेज ऐसे मानने वाले नहीं हैं और उन्हें ताकत के बल से ही सबक सिखाया जा सकता है। 1919 का साल था जब अंग्रेजी हुकूमत ने जलियांवाला बाग में निर्दोष लोगों का कत्लेआम कर दिया था। इस नरसंहार के बाद बारह साल का खुशमिजाज और चंचल बालक भगत सिंह भी उस जगह पर गया था। उसने वहां जो देखा, वह उसकी सोच के परे था वह स्तब्ध था, यह सोचकर कि कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है। इस घटना से भगत सिंह गुस्से की आग में जलने लगे और उसी जलियांवाला बाग में उसने अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने की कसम खायी। धीरे-धीरे उनके कदम क्रांति की ओर बढ़ते गए।

उन्होंने लाहौर में जॉन सैटर्स की हत्या की और उसके बाद दिल्ली में सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने भगत सिंह को उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी के फंदे पर लटका दिया। ऐसा कहा जाता है कि फांसी दिए जाने से पहले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आजादी गीत गाने लगे- ‘कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगे, ये अपनी ही जमी होगी ये अपना आसमां होगा।’ जब उन्हें फांसी के फंदे पर लटकाने के लिए ले जाया जा रहा था तब वह ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘हिंदुस्तान आजाद हो के नारे लगा रहे थे। साथ ही वह ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…’ गीत भी गुनगुना रहे थे।

जेल में बंद भगत सिंह से जब उनकी मां मिलने के लिए आई थी तो उन्होंने उनसे कहा था, “मां तुम मेरी लाश लेने मत आना, भाई कुलदीप को भेज देना, कहीं तुम मेरी लाश को देखकर रो पड़ी तो लोग कहेंगे कि देखो भगत सिंह की मां रो रही है।” शहीदों के सिरमौर शहीद-ए-आजम भगत सिंह की केवल 23 साल की छोटी उम्र में जितनी वैचारिक परिपक्वता और लक्ष्य के प्रति जो दृढ़ता थी, वह विलक्षण थी। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगत सिंह को याद करते हुए कहा था, “क्या आप कल्पना कर सकते हैं, एक हुकुमत, जिसका दुनिया के इतने बड़े हिस्से पर शासन था, इसके बारे में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। इतनी ताकतवर हुकूमत, एक 23 साल के युवक से भयभीत हो गयी थी।

शहीद भगत सिंह पराक्रमी होने के साथ-साथ विद्वान भी थे, चिन्तक भी अपने जीवन की चिंता किये बगैर भगत सिंह और उनके क्रांतिवीर साथियों ने ऐसे साहसिक कार्यों को अंजाम दिया, जिनका देश की आजादी में बहुत बड़ा योगदान रहा। शहीद भगत सिंह के जीवन का एक और खूबसूरत पहलू यह है कि वे टीम वर्क के महत्व को बखूबी समझते थे। लाला लाजपतराय के प्रति उनका समर्पण हो या फिर चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु समेत क्रांतिकारियों के साथ उनका जुड़ाव, उनके लिये, कभी व्यक्तिगत गौरव, महत्त्वपूर्ण नहीं रहा। वे जब तक जिए, सिर्फ एक मिशन के लिए जिए और उसी के लिये उन्होंने अपना बलिदान दे दिया वह मिशन था भारत को अन्याय और अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाना। *

एक बार जेल में भगत सिंह से पूछा गया, आपने केस में खुद का बचाव क्यों नहीं किया? उन्होंने जवाब दिया- “इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मजबूत होता है, अदालत में अपील से नहीं।

जन्मः 28 सितंबर 1907 मृत्युः 23 मार्च 1931