फूलेदई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार, पूजैं द्वार बारंबार, फूले द्वार…. (आपकी देहरी (दहलीज) फूलों से भरी और सबकी रक्षा करने वाली (क्षमाशील) हो, घर व समय सफल रहे, भंडार भरे रहें, इस देहरी को बार-बार नमस्कार, द्वार खूब फूले-फले…) गीत की पंक्तियों के साथ उत्तराखंड में फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार हिंदू महीने चैत्र के पहले दिन प्रतिवर्ष मनाया जाता है। फूल का अर्थ है फूल, देई एक औपचारिक हलवा है जो दिन में सभी को चढ़ाया जाता है।
त्योहार की परंपरा के अनुसार, बच्चे, विशेष रूप से युवा लड़कियां, आस-पास के क्षेत्रों या जंगलों से फूल इकट्ठा करती हैं और घर-घर जाकर घरों की समृद्धि की कामना करती हैं। बदले में, बच्चों को मिठाई और नकद सहित उपहार दिए जाते हैं।
‘घोघा माता फुल्यां फूल, दे-दे माई दाल चौंल’ और ‘फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार’ गीत गाते हुए बच्चों को लोग इसके बदले में दाल, चावल, आटा, गुड़, घी और रुपए पैसे दक्षिणा के रूप में दान करते हैं। पूरे माह में यह सब जमा किया जाता है। इसके बाद घोघा (सृष्टि की देवी) की पूजा की जाती है। चावल, गुड़, तेल से मीठे चावल बनाकर प्रसाद के रूप में सबको बांटा जाता है। कुछ क्षेत्रों में बच्चे घोघा की डोली बनाकर देव डोलियों की तरह घुमाते हैं। अंतिम दिन उसका पूजन किया जाता है।