विश्व बधिर फेडरेशन के अनुसार विश्व में लगभग 7 करोड़ 20 लाख बधिर है। इनमें से 80 प्रतिशत विकासशील देशों में रहते हैं। ये अलग तरह की 300 सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। जिन्हें सुनाई नहीं देता या सुनने की शक्ति कमजोर है उनके लिए सांकेतिक भाषा ही संचार का एकमात्र तरीका है। दूसरी भाषा की तरह सांकेतिक भाषा के भी अपने व्याकरण और नियम है। सांकेतिक भाषा बधिर व्यक्तियों के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसे ही मूक बधिर लोगों को मातृ भाषा भी कहा जा सकता है। 23 सितंबर 1951 को विश्व मूक फेडरेशन की स्थापना हुई थी। इसी उपलक्ष्य में 2018 से हर साल अंतर्राष्ट्रीय साइन लैंग्वेज दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य सांकेतिक भाषा के सन्दर्भ में जागरूकता फैलाना है।
5 वर्ष से कम आयु के एवं 15000 रुपए से कम मासिक आय वाले परिवार के बच्चे को यदि कॉकलियर इम्प्लांट प्रत्यारोपित करने की आवश्यकता होती है तो उसके सारे खर्च का वहन केंद्र सरकार करती है। ऐसे बच्चों को दो वर्षों तक स्पीच थैरेपी भी निशुल्क उपलब्ध कराई जाती है। ऐसे लोगों के कौशल विकास के लिए ट्रेनिंग की विशेष व्यवस्था की गई है।
सांकेतिक भाषा में देश की पहली डिक्शनरी भारत में ‘साइन लैंग्वेज’ का प्रयोग करीब 100 साल से हो रहा है पर देश के अलग-अलग इलाकों में ‘साइन’ के जरिए एक ही बात कहने के अलग-अलग तरीके हैं। उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारत में मुट्ठी बंद कर दोनों बाहों को एक के ऊपर एक रखा जाए तो उसे ‘शादी’ का ‘साइन’ माना जाता है पर इसी ‘साइन’ को उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में ‘जेल’ का ‘साइन’ माना जाता है। ऐसे में जरूरत थी एक ऐसे शब्दकोश यानी डिक्शनरी की जो भाषा एवं क्षेत्रीयता के बीच सेतु का काम कर सके। इंडियन साइन लैंग्वेज रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर ने इसका अध्ययन कर भारत की पहली सांकेतिक भाषा का शब्दकोश बनाया। तीन संस्करणों में जारी इस शब्दकोश में करीब 10 हजार शब्द शामिल किए गए हैं। शब्दकोश का पहला संस्करण 23 मार्च 2018 को 3000 शब्दों के साथ और दूसरा संस्करण 6000 शब्द के साथ (पहले 3000 शब्द सहित) 27 फरवरी 2019 को लॉन्च किया गया था। तीसरा संस्करण 17 फरवरी 2021 को जारी किया गया। इस शब्दकोश में वीडियो में संकेत, संकेतों के लिए अंग्रेजी शब्द और प्रासंगिक चित्र भी शामिल हैं। शब्दकोश में देश के विभिन्न हिस्सों में उपयोग किए जाने वाले क्षेत्रीय संकेतों को भी शामिल किया गया है।
सांकेतिक भाषा को पहली बार विषय का दर्जा यह पहली बार है कि जब भारत में सांकेतिक भाषा को विषय का दर्जा दिया गया है। 34 साल बाद आई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का 1 वर्ष पूरा होने पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इसकी घोषणा करते हुए कहा, “अब छात्र इसे एक भाषा के तौर पर भी पड़ पाएंगे। इससे भारतीय साइन लैंग्वेज को बहुत बढ़ावा मिलेगा, हमारे दिव्यांग साथियों को बहुत मदद मिलेगी।” एनसीईआरटी एवं इंडियन साइन लैंग्वेज रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर के बीच एक समझौते के मुताबिक हिंदी-अंग्रेजी माध्यम को कक्षा एक से बारहवीं तक की सभी एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकें, शिक्षक पुस्तिका और अन्य पूरक पाठ्यपुस्तक एवं संसाधनों को भारतीय सांकेतिक भाषा में परिवर्तित किया जा रहा है। इस पहल से उन सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों को लाभ होगा जो सुन नहीं सकते हैं या कम सुन पाते हैं। प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में सहूलियत के लिए वीडियो सामग्री भी जारी की गई है।
सरकार का ये दायित्व होता है कि हर व्यक्ति का भला हो, हर व्यक्ति को न्याय मिले। यही सोच सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के मंत्र का भी आधार है। फिर चाहे वरिष्ठ जन हो, महिलाएं हो, छात्र हो, आदिवासी हो, पीड़ित, शोषित, वंचित हो या फिर दिव्यांगजन समाज के जिन वर्गों के हितों का ध्यान आजादी के बाद 70 साल में भी नहीं रखा गया उनके लिए 2014 के बाद केंद्र सरकार ने विशेष प्रयास किए हैं। कौशल प्रशिक्षण से लेकर नौकरियों में आरक्षण 3 से बढ़ाकर 4 प्रतिशत करना हो या फिर समाज की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए ट्रेनिंग, पढ़ाई-लिखाई, रिसर्च मेडिकल सुविधाएं मुहैया कराना, अब समाज के हर वर्ग की तरह मूक-बधिर भी केंद्र सरकार की प्राथमिकता में शामिल हैं।