लोककला आधारित हस्तशिल्प की बात हो, या पहाड़ी लोकजीवन के स्वादिष्ट भोजन की, उत्तराखंड की विरासत काफी समृद्ध रही है। अब इस धरोहर को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलने का सिलसिला शुरू हुआ है क्योंकि राज्य के 7 ऐसे अनूठे प्रोडक्ट्स को जीआई टैग प्राप्त हुआ है। वास्तव में सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण माने जाने वाले अनोखे व्यावसायिक प्रोडक्ट्स को संरक्षित करने के उद्देश्य से जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग से नवाज़ा जाता है. अब यह उपलब्धि उत्तराखंड के जिन 7 प्रोडक्ट्स के हाथ लगी है, उसके बारे में विस्तार से जानिए.
इनमें कुमाऊं का च्युरा तेल, मुनस्यारी राजमा, भोटिया दन्न (भोटिया, एक खानाबदोश समुदाय द्वारा बनाई गई गलीचा), ऐपन (विशेष अवसरों पर बनाई जाने वाली पारंपरिक कला), रिंगल शिल्प (बांस की धागों को बुनकर आइटम बनाने की कला), तांबे के उत्पाद और थुलमा (एक तरह का कंबल जो स्थानीय रूप से प्राप्त कपड़े से काता जाता है) शामिल हैं।
इसके अलावा, राज्य ने 11 कृषि उत्पादों – लाल चावल, बेरीनाग चाय, गहत, मंडुआ, झंगोरा, बुरांस शरबत, काला भट्ट, चौलाई / रामदाना, अल्मोड़ा लाखोरी मिर्च, पहाड़ी तूर दाल और माल्टा फल के लिए जीआई टैग के लिए भी आवेदन किया है।
राज्य के उत्पादों को जीआई टैग मिलने पर खुशी व्यक्त करते हुए सरकार के प्रवक्ता और कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा, “यह बड़े गर्व की बात है कि राज्य के मूल उत्पादों को वैश्विक पहचान मिल रही है। जीआई टैग स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उन्होंने कहा, “हिमालयी राज्य में 6.48 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में से 3.50 लाख हेक्टेयर में पारंपरिक उत्पादों की खेती की जा रही है। तेजपत्ता जीआई टैग पाने वाला पहला उत्पाद था। “जीआई टैग के साथ, उत्पादों की अच्छी कीमत मिलेगी, जिससे मांग बढ़ने की संभावना है एवं इन वस्तुओं के उत्पादन से जुड़े लोगों को भी लाभ मिलेगा।